Wednesday, November 7, 2012

Wednesday, March 23, 2011

Sunday, March 13, 2011

समर्पण



अश्रु आते याद करके ,उन वतन के जवानों को
शहीद हो गए वो शीश, वतन की लाज बचाने को

तडपते है प्राण सुनकर, उन जवानों की मौन आहें
चीर देती है कलेजा. आज़ादी की व्याकुल कराहें
छुट गयी पीड़ा ह्रदय में, याद समर्पण कर उनको

शहीद हो गए वो शीश, वतन की लाज बचाने को

था शहीदों को विश्वास इतना, मानवता की लाज रखेंगे
धर्म राष्ट्र संस्कृति की, रक्षा को तैयार रहेंगे
छा गयी सरहद मावक चतुर्दिक, पूर्णिमा के लाने को

शहीद हो गए वो शीश, वतन की लाज बचाने को

हाथ यूँ सक्षम किये, न्याय का पक्ष ले सकें
नासिका दुर्घंध के छल में, बिलकुल ना है आ सके
भारत का प्रत्येक मस्तक शीश नवाता उन वीरो को

शहीद हो गए वो शीश, वतन की लाज बचाने को
~स्वाति (सरू) जैसलमेरिया

इंसान

गरीबी हटाने के लिए नेता
'सेमिनार' मनाते है
होटल में बेठ बेठ
वो डिन्नर जमके खाते है
मोटे मोटे अफसर नेता
...एक स्वर में ये गाते है
गरीबी हटाओ, गरीबी हटाओ
और धन उनका हड़प जाते है
किस से छुपा है ये कटु सत्य की
लाखो गरीबन एक समय ही खाते है
सब लेके घूम रहे दूरबीन तो क्या
गरीबी की रेखा को ना देख वो पाते है
ग्रामीण विकास की योजना में
मिलती लाखो की धन राशी
चने बाँट कर गावों में
खुद मलाई-कोफ्ता खाते है
सफ़ेद कपडे और मन हे मैले
फिर भी प्रतिष्टा पाते है
हाय! विधाता तू ही देख
क्या वो 'इंसान' कहलाते है...??

गरीबी



एक गरीब का बच्चा भूख से तड़फ रहा था
कभी इधर कभी उधर लोगो के घरो
में झांक रहा था सुना रहा था
एक भूखा चेहरा अपने पेट की पीड़ा
तब ही उसे दिखाई दिया
...एक अख़बार का टुकड़ा
वह उसे खाने लगा
वह जेसे ही खाने को बढ़ा
तो पास में एक लड़के को देखा
पढ़ लिखा लड़का किसी से बतिया रहा था
अब सरकार जगह-जगह
वर्क्षा-रोपण कर रही है
ये सुन वो बच्चा मुस्कुरा रहा था
दोड़ा दोड़ा वो गया अपनी माँ के पास
बोला -माँ अब मत हो उदास
अब सरकार जगह जगह
वृक्ष लगा रही है
अपने खाने का इंतजाम कर रही है
अब हमे अख़बार खाने की जरुरत नहीं हे
अपनी भूख मिटाने के लिए सरकार
पेड़ो की व्यवस्था कर रही है
उन पत्तो से पेट भर लेंगे
जो सरकार अपनी योजना
में लगा रही है
देश में गरीबी का ये हाल
किसी से छुपा नहीं है
खाने को अन्न नहीं
फिर भी सरकार
करोडो रुप्प्या दुसरे देशो की
मेहमानबाजी में लगा रही है ........
~स्वाति {सरू}जैसलमेरिया

पैसे की कीमत

कंजूस पिता जब मरने की तैयारी में था
बेटा भी कम नहीं ले जाने की फ़िराक में था
मंगवा दिया दो गुना बड़ा कफ़न
और हुआ मन ही मन प्रसन्न
कहा" मेरे पिता ने जीवन में बड़ा कष्ट पाया
...न अच्छा पहना न अच्छा खाया
इसीलिए मैंने दो गुना बड़ा कफ़न मंगवाया
अच्छी तरह से पिताजी को ढककर ले जाऊंगा
अपनी दरियादिली दुनिया को दिखलाऊंगा |"
सुना पिता ने तो खड़े हो गये कान
बोला "बेटा मत कर फ़िज़ूल खर्ची का काम
इस कफ़न के आधे से तू मेरी लाश ढकना
और आधा कफ़न मेरे बेटे संभाल कर रखना
याद रखना तेरा ये कफ़न बेकार नहीं जायेगा
आधा मेरी लाश पर आधा तेरे काम आएगा |"



-स्वाति "सरू " जैसलमेरिया