पुकार कर के कह रही ,इस धरती पर आने दो
अपना न सको मुझे ,क्या मेने ऐसा पाप किया
दिखला न सको मुझे दुनिया ,क्या मेने गुनाह किया
मत करो अपराध ऐसा ,मुझको भी मुस्कुराने दो
पुकार कर के कह रही ,इस धरती पर आने दो
स्वयं समझती हु बिन बोले तुम्हारे भावो की वाणी को
छंद वेश में छिपी असुरता की हर कुटिल कहानी को
सहज निष्कपट होकर ,मुझे खुश रह जाने दो
पुकार कर के कह रही ,इस धरती पर आने दो
ऋषि के ये शब्द है ,ऐसे धधकते अंगारे
जो मुझ अबला को मारे, विकृत रूप वो धारे
रुढ़िवादी की झंझा में, मुझको न मर जाने दो
पुकार कर के कह रही, इस धरतीपर आने दो..!
-स्वाति 'सरू' जैसलमेरिया