Sunday, March 13, 2011

"दुनिया की रीत"

भाषण से भी ज्यादा कविता जमती है
भाषण मर्द है कविता औरत
इसीलिए कविता कवियत्री के मुहं से फबती है

पानी का मटका ,सुराही भी पानी की
मटके से ज्यादा सुराही प्रिय लगती है
अपनी औरत चाहे कितनी भी सुन्दर हो
फिर भी अपनी से ज्यादा पराई भली लगती है

श्वेत वस्त्र पहनती ,श्रंगार नहीं करती
फिर भी सेठानी से ज्यादा सेठ को नर्स
प्यारी लगती है
कहती है "सरू" सुनना मेरे भाई ये दुनिया की
रीत बड़ी प्यारी लगती है
~~~स्वाति (सरू) जैसलमेरिया

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