Sunday, March 13, 2011

एक सिंह की सच्ची प्रेम कहानी (Part - I)

ये क्या कमाल हो गया ये क्या बेमिसाल हो गया
हमारे शब्दों की लेखनी से किसीको हमसे प्यार हो गया
कुछ शब्द उन्होंने सांधे कुछ शब्द हमने बाँधे
शब्दों का ये रूप हमारा केसे बेहिसाब हो गया
ये क्या कमाल हो गया ये क्या बेमिसाल हो गया

हंसी ख़ुशी की दुनिया थी मस्ती का वो आलम था
कागज की वो कश्ती थी नदी का वो किनारा था
न दुनिया की चिंता थी न मन में द्वेष हमारे था
अल्हड सा वो बचपन मेरा किना रूप न्यारा था
ख़ुशी के उन्ही शब्दों में जाने क्या कमाल हो गया
ये क्या कमाल हो गया ये क्या बेमिसाल हो गया

कुछ समझ न पाए वो कुछ समझ न पाए हम
किन शब्दों ने खेल रचा कुछ जान न पाए हम
संभले तभी हमपर क्या खुमार हो गया
ये क्या कमाल हो गया ये क्या बेमिसाल हो गया

कलम हमारी छुट गयी शब्द हमारे रूठ गये
तभी उन्होंने हमें सभाला वर्ना हम तो ठहर गये
शब्द उन्ही के सुन सुन कर, लिखने का आसार हो गया
उफ़ ये क्या कमाल हो गया. उफ़ ये क्या बेमिसाल हो गया

पहले उनको हमारे लेखन से प्यार था
अब उनको हमसे प्यार हो गया
और हमको उनसे प्यार हो गया....!!

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