क्यों दया धर्मं बिसराया, क्यों दुनिया हुई वीरानी
जब सबको दूध पिलाया, मै गौ माता कहलाई
क्या है अपराध हमारा, जो काटे आज कसाई
बस भीख प्राण की दे दो. मै द्वार तुम्हारे आई
मै सबसे निर्बल प्राणी, मत करो आज मनमानी
क्यों दया धर्मं बिसराया, क्यों दुनिया हुई वीरानी
जब जाऊ कसाई खाने. चाबुक से पिटी जाती,
उस उबले जल को तन पर मै सहन नहीं कर पाती
जब यन्त्र मौत का आता, मै हाय हाय चिल्लाती
मेरा कोई साथ न देता , यहाँ सबकी प्रीत पहचानी
क्यों दया धर्मं बिसराया, क्यों दुनिया हुई वीरानी
उस समदर्शी इश्वर ने क्यों हमको मूक बनाया
न हात दिए लड़ने को हिन्दू भी हुआ पराया
कोई मोहन बन जाओ रे, जिसने मोहे कंठ लगाया
मै फ़र्ज़ निभाऊ माँ का, पर जग ने प्रीत न जानी
क्यों दया धर्मं बिसराया, क्यों दुनिया हुई वीरानी
मै माँ बन दूध पिलाती, तुम माँ का मांस बिकाते
क्यों जननी के चमड़े से तुम पैसा आज कमाते
मेरे बछड़े. अन्न उपजाते पर तुम सब दया न खाते
"गौ हत्या " बंद करो रे, रहने दो वंश निशानी |
-स्वाति 'सरू' जैसलमेरिया
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