Sunday, March 13, 2011

एक सिंह की सच्ची प्रेम कहानी (Part - IV)

क्यों कोई समझ न पाता हमने तो बस प्यार किया है
वो प्रेम जो कृष्ण ने राधे रानी से किया है
तन के रिश्ते भी क्या होते होंगे यहाँ तो मन मिल गया है
मन ने ही मन को अपना बनाकर रख दिया
उफ़ ये क्या हो गया ......
इस प्यार को कोई समझ नहीं पाया
हमने भी अपनी ख़ुशी को कुर्बा कर समझाया
प्रेम का ये समर्पण दिल ने कर दिया
पर आत्मा का प्रेम हमेशा ही छु गया
उफ़ ये क्या ही गया .....
ये दुआ करता हु वो तुम जहा भी रहो खुश रहो
तुम्हे जीवन में वो ख़ुशी मिले जो तुम चाहो
गम तुम्हारे जीवन में दूर दूर तक न रहें
क्यों आंसुओ से आज में बेताब हो गया
उफ़ ये क्या हो गया .....
जब तक जीवित हूँ ये दुआ करता रहूँगा
हर ख़ुशी हो तुम्हारे आँचल में हो ये कामना करता रहूँगा
जो मिले जीवन में साथी तुम्हे इतना प्यार दे
कभी सपने में भी तुम हमे याद न करे
तुम्हारी यादो से आज में दीवाना हो गया
उफ़ ये क्या हो गया ....

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