'सेमिनार' मनाते है
होटल में बेठ बेठ
वो डिन्नर जमके खाते है
मोटे मोटे अफसर नेता
...एक स्वर में ये गाते है
गरीबी हटाओ, गरीबी हटाओ
और धन उनका हड़प जाते है
किस से छुपा है ये कटु सत्य की
लाखो गरीबन एक समय ही खाते है
सब लेके घूम रहे दूरबीन तो क्या
गरीबी की रेखा को ना देख वो पाते है
ग्रामीण विकास की योजना में
मिलती लाखो की धन राशी
चने बाँट कर गावों में
खुद मलाई-कोफ्ता खाते है
सफ़ेद कपडे और मन हे मैले
फिर भी प्रतिष्टा पाते है
हाय! विधाता तू ही देख
क्या वो 'इंसान' कहलाते है...??
"सफ़ेद कपडे और मन हे मैले
ReplyDeleteफिर भी प्रतिष्टा पाते है
हाय! विधाता तू ही देख
क्या वो 'इंसान' कहलाते है...??"
सच्चा और सही सवाल
hmm... you are right
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